मुंगेली जल संसाधन विभाग में भ्रष्टाचार की गंध — 45 करोड़ की नहर परियोजना बनी किसानों के लिए सिरदर्द

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मुंगेली/लोरमी | प्रदेश में विकास की योजनाएं किसानों की खुशहाली के लिए बनाई जाती हैं, लेकिन मुंगेली जिले का जल संसाधन विभाग इन योजनाओं को भ्रष्टाचार का साधन बना चुका है। लोरमी क्षेत्र में संचालित कैचमेंट एरिया डेवलपमेंट योजना में भारी गड़बड़ी और अनियमितताओं का मामला सामने आया है। इस परियोजना की कुल लागत लगभग 45 करोड़ रुपये है, परंतु चार वर्ष बीत जाने के बाद भी कार्य अधूरा है।

मंत्री के सख्त निर्देशों की खुली अवहेलना
प्रदेश के जल संसाधन मंत्री ने विभागीय समीक्षा बैठक में स्पष्ट कहा था कि “विभागीय कार्यों में लापरवाही और भ्रष्टाचार किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे।” लेकिन मुंगेली जल संसाधन विभाग के अफसरों ने इन निर्देशों को मजाक बना रखा है। मंत्री के आदेशों के बावजूद अधिकारी, ठेकेदारों की मिलीभगत से लाखों-करोड़ों के खेल में लगे हुए हैं।

लोरमी की 45 करोड़ की नहर योजना बनी दिखावे का प्रोजेक्ट
लोरमी विकासखंड के अंतर्गत राजीव गांधी जलाशय (खुड़िया) से निकलने वाली डी-1, डी-2 और डी-3 नहरों में अंडरग्राउंड पाइपलाइन बिछाने का काम वर्ष 2021 में शुरू हुआ था।नइस परियोजना का उद्देश्य था — किसानों के खेतों तक सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी पहुँचाना, ताकि फसलों को फायदा हो और उत्पादन बढ़े। लेकिन हकीकत यह है कि यह योजना केवल कागजों पर पूरी हुई है। ग्रामीणों ने बताया कि नहरों में लगाए गए पाइप घटिया गुणवत्ता के हैं, जिनके जोड़ कमजोर हैं। नतीजा — पानी खेतों तक नहीं पहुँच रहा, बल्कि कई जगह उल्टा बह रहा है।

22 करोड़ का भुगतान, अधूरा काम — किसानों की हताशा
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, परियोजना की कुल राशि का लगभग 50 प्रतिशत यानी 22 करोड़ रुपये ठेकेदारों को पहले ही भुगतान कर दिया गया है। जबकि साइट पर जाकर देखने पर पता चलता है कि काम आधा-अधूरा पड़ा है।
ग्रामीणों का आरोप है कि “बिना कार्य पूर्ण किए ही भुगतान कर दिया गया, ताकि ठेकेदार और अधिकारी आपस में रकम बांट लें।”

किसानों का दर्द — “पानी खेत तक नहीं, सरकार तक शिकायत पहुँची नहीं”
किसानों ने बताया कि उनके खेतों में बनाए गए चेंबरों में पानी आता तो है, लेकिन निकलकर खेतों तक नहीं पहुँचता। कुछ जगह पाइपलाइन के जोड़ टूट चुके हैं, और कुछ जगह पाइप ही फट गए हैं। ग्रामीण किसान गजेंद्र साहू ने बताया — “हमने उम्मीद की थी कि इस योजना से खेतों में पानी मिलेगा, लेकिन अब तक नहर सूखी है। पाइपलाइन बिछाने के बाद अधिकारी दोबारा देखने तक नहीं आए।”

विभागीय अधिकारी मौन, जिम्मेदारी से भागते हुए नजर आए
पत्रकारों ने जब इस संबंध में लोरमी जल संसाधन विभाग के अधिकारियों से बात करनी चाही, तो सभी ने एक-दूसरे पर जिम्मेदारी टाल दी। एसडीओ ने कहा — “यह प्रोजेक्ट ई के अधीन है।”
ई से पूछा गया तो उन्होंने कहा — “इस पर मैं कुछ नहीं कह सकता, एसडीओ से पूछिए।” यह स्थिति दर्शाती है कि पूरे विभाग में जवाबदेही नाम की कोई चीज नहीं बची है।

उपमुख्यमंत्री साव बोले — “लोरमी बदल रहा है”, लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और
जहाँ एक ओर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री अरुण साव कहते हैं कि “लोरमी विकास की राह पर तेजी से आगे बढ़ रहा है”, वहीं उनके ही विधानसभा क्षेत्र में जल संसाधन विभाग के अधिकारी नियमों को ताक पर रखकर भ्रष्टाचार की मिसाल पेश कर रहे हैं। विकास के नाम पर बनाई गई यह नहर परियोजना आज भ्रष्टाचार का प्रतीक बन गई है।
किसानों का कहना है कि “जब उपमुख्यमंत्री के क्षेत्र में ही इस तरह की धांधली हो रही है, तो बाकी जिलों का क्या हाल होगा?”

टैक्स के पैसों से हो रहा खुला खेल
स्थानीय समाजसेवियों ने इस परियोजना को “शोपीस प्रोजेक्ट” करार दिया है। उनका कहना है कि विभाग और ठेकेदारों ने मिलकर केवल फाइलों में प्रगति दिखाई है, जबकि जमीनी हकीकत बेहद शर्मनाक है।
“जनता का टैक्स का पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है, लेकिन किसानों को एक बूंद भी नहीं मिल रही,” ग्रामीणों ने कहा। जानकारों के अनुसार, पाइपलाइन बिछाने के बाद किसी भी प्रकार की तकनीकी जांच नहीं कराई गई। इससे स्पष्ट है कि ठेकेदारों को संरक्षण मिल रहा है।

कृषि प्रधान जिले में सिंचाई ठप — विकास की दिशा या भ्रष्टाचार की रफ्तार?
मुंगेली एक कृषि प्रधान जिला है। यहाँ की अधिकांश आबादी खेती पर निर्भर है। यदि सिंचाई व्यवस्था ही भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाए तो किसानों की हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है।
लोरमी का यह मामला अब सिर्फ तकनीकी खामी नहीं बल्कि नीतिगत भ्रष्टाचार का उदाहरण बन गया है।

जनता की मांग — उच्च स्तरीय जांच और दोषियों पर कार्रवाई
स्थानीय नागरिकों, जनप्रतिनिधियों और किसानों की एकजुट मांग है कि इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए। यदि जांच निष्पक्ष हुई तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि करोड़ों रुपये की राशि कैसे और किसकी जेब में गई। “अब वक्त आ गया है कि सरकार सख्त कार्रवाई करे, ताकि अधिकारी और ठेकेदारों को यह एहसास हो कि जनता का पैसा उनकी जागीर नहीं है।” यदि जांच होती है, तो निश्चित रूप से “दूध का दूध और पानी का पानी” सामने आ जाएगा।

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