गोरक्षपीठ के पीठ क्षेत्र गो हत्या के अवशेष मिलना चिंतनीय – शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्दजी

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अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट

सुल्तानपुर । परमाराध्य परमधर्माधीश ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामीश्री अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वतीजी महाराज ‘1008’ ने उत्तरप्रदेश के सुल्तानपुर जिले के दरपी गाँव में गोमाता के दो कटे हुये सिर मिलने की अमानवीय और घिनौनी घटना पर गहरा दुःख तथा रोष व्यक्त किया है। शंकराचार्यजी महाराज ने कहा है कि जिस प्रदेश में ‘गोरक्षपीठ’ के महन्त सर्वोच्च आसन पर विराजमान हों , वहाँ इस प्रकार गोमाता की हत्या और सार्वजनिक रूप से उनके अङ्ग-भङ्ग करके फेंकना ना केवल कानून – व्यवस्था पर एक प्रश्नचिह्न है , बल्कि यह सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति के हृदय पर किया गया सीधा वार है। यह दर्शाता है कि दुष्ट और गौ – हत्यारे अब भी निर्भीक होकर अपने कृत्य को अञ्जाम दे रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि गौहत्या को शास्त्रों में महापाप कहा गया है। गौमाता ना केवल पूजनीय है , अपितु वह हमारे कृषि , अर्थ और स्वास्थ्य का भी आधार है। एक ओर सरकारें गौ – रक्षा के बड़े-बड़े संकल्प लेती है , दूसरी ओर इस प्रकार की विभत्स घटनायें हो रही हैं। यह स्थिति स्वीकार्य नहीं है। शंकराचार्यजी ने प्रशासन से माँग करते हुये कहा है कि स्थानीय पुलिस दोषियों को पकड़ने में जो हीला – हवाली कर रही है , उसे तुरन्त बन्द किया जाये। इस जघन्य कृत्य के पीछे के सभी अपराधियों को कुछ क्षण की भी देरी किये बिना गिरफ्तार किया जाये और उन पर गौ – हत्या के सर्वाधिक कठोर कानूनों के तहत मुक़दमा चलाया जाये। प्रशासन तुरन्त यह निर्धारित करे कि इस क्षेत्र में गौ – रक्षा सुनिश्चित करने में कहाँ चूक हुई है। लापरवाही बरतने वाले पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों पर भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिये। जनता का आक्रोश जायज़ है , लेकिन सभी सनातनी बन्धु धैर्य और शान्ति बनाये रखते हुये कानून के दायरे में रहकर अपराधियों को दण्डित करवाने का प्रयास करें। गौ-रक्षा के लिये सभी एकजुट हों और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने का संकल्प लें। महाराजश्री ने अन्त में कहा कि जब तक गौ – हत्या को पूरी तरह से रोक नहीं दिया जाता और गौ-तस्करों के मन में कानून का भय स्थापित नहीं हो जाता , तब तक गौ – रक्षा का कोई भी संकल्प अधूरा है। प्रशासन को तत्काल सक्रियता दिखाते हुये जनता के विश्वास को पुनः स्थापित करना चाहिये।

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