हजार अश्वमेध यज्ञ फलदाई है रमा एकादशी – अरविन्द तिवारी



रायपुर । हिन्दू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व माना गया है। हर महीने में दो बार एकादशी का व्रत पड़ता है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को रमा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि यह व्रत मां लक्ष्मी और श्री हरी भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है , रमा एकादशी का व्रत दिवाली से पहले पड़ता है और मां लक्ष्मी की पूजा के लिये अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप और श्रीसूक्त या विष्णु सहस्रनाम के पाठ का विशेष महत्व होता है। पंचांग के अनुसार इस वर्ष रमा एकादशी 17 अक्टूबर 2025 शुक्रवार को मनाई जा रही है एकादशी तिथि 16 अक्टूबर की सुबह 10 बजकर 35 मिनट से शुरु होकर 17 अक्टूबर की सुबह 11 बजकर 12 मिनट तक रहेगी। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार यह व्रत 17 अक्टूबर को रखा जा रहा है। वहीं रमा एकादशी का पारण शनिवार, 18 अक्टूबर 2025 को किया जाएगा। पारण का शुभ समय सुबह 06 बजकर 24 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 41 मिनट तक रहेगा।
रमा एकादशी का महत्व
शास्त्रों के अनुसार रमा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को हजार अश्वमेध यज्ञ के समान फल की प्राप्त होती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के जीवन के सभी पापों का नाश होता है। रमा एकादशी के दिन अनाज , प्याज , लहसुन और सरसों के तेज का सेवन वर्जित होता है। दिन भर व्रत रखकर महिलायें शाम को भगवान विष्णु की पूजा करती हैं और रमा एकादशी की कथा सुनती है। अगले दिन शुभ मुहूर्त में जल अर्पित कर व्रत खोला जाता है।
रमा एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक मुचुकुंद नाम का राजा रहता है जो विष्णुजी का परम भक्त होने के साथ-साथ बहुत ही सत्यवादी भी था। उसके राज्य में किसी चीज की कमी नहीं थी। उस राजा की एक कन्या भी थी जिसका नाम चंद्रभागा था। उसने अपनी कन्या का विवाह एक राजा के पुत्र शोभन से कर दिया। राजा मुचुकुंद के साथ-साथ उसके राज्य में सभी लोग एकादशी व्रत करते और कठिन नियमों का पालन करते थे। यहीं नहीं , उस नगर के जीव – जंतु भी एकादशी के व्रत का पालन करते थे। एक बार चन्द्रभागा सोचती है कि मेरे पति तो बड़े ही कमजोर हृदय के हैं , वे एकादशी का व्रत कैसे करेंगे। इस पर वह अपने पति शोभन को बताती है कि उसके राज्य में मनुष्य से लेकर पशु – पक्षी तक एकादशी का व्रत करते हैं। ऐसे में यदि वह व्रत नहीं करेंगे तो उन्हें राज्य से बाहर जाना पड़ेगा। चंद्रभागा की यह बात सुनकर राजा भी इस व्रत को रखने को तैयार हो जाता है , लेकिन व्रत का पारण करने से पहले ही उसकी मृत्यु हो जाती है। इसके बाद चंद्रभागा अपने पिता के यहां रहकर ही पूजा – पाठ में लीन हो जाती है। एकादशी व्रत के प्रभाव से शोभन को अगले जन्म में देवपुर नगरी का राजा बन गया , जहां उसे किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। एक बार राजा मुचुकुंद के नगर के एक ब्राह्मण ने शोभन को देखा और उसे पहचान लिया। ब्राह्मण ने वापस नगर को लौटकर चंद्रभागा को पूरी बात बताई। यह सुनकर चंद्रभागा अति प्रसन्न हो जाती है और दोबारा शोभन के पास जाती है। चंद्रभागा आठ साल की उम्र से एकादशी व्रत का कर रही थी जिसका समस्त पुण्य शोभन को सौंप देती है , इस कारण देवपुर नगरी में सुख – संपदा की वृद्धि हो जाती है। इसके बाद चंद्रभागा और शोभन एक साथ खुशी-खुशी रहने लगते हैं।

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