अमरकंटक में पुनः साल बोरर लग रहे कीड़े,बीमारी का बढ़ता प्रकोप।

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संवाददाता – श्रवण उपाध्याय
अमरकंटक ।  माँ नर्मदा जी की उद्गम स्थली / पवित्र नगरी अमरकंटक में एक बार पुनः गंभीर पर्यावरणीय संकट की आहट बढ़ती दिख रही है । अमरकंटक के मैकल सतपुड़ा और विंध्य पर्वत मालाओं पर सघन वनों से आच्छादित इस क्षेत्र में साल बोरर नामक कीट (कीड़े) फिर से सरई के पेड़ो को खोखला कर रहा है जिससे रोग का प्रकोप तेजी से फैल रहा है ।  हजारों साल पुराने वृक्ष सूख रहे हैं । यह स्थिति न केवल वनों के लिए बल्कि पूरे अमरकंटक के पारिस्थितिक संतुलन के लिए खतरे की घंटी मानी जा रही है ।

*क्या है साल बोरर की बीमारी*

वन विभाग के सूत्रों के अनुसार साल बोरर एक प्रकार का वुड बोरिंग बीटल (लकड़ी भेदक कीट) होता है जो साल वृक्ष के तनों में छेद कर उनमें अंडे देता है । कुछ ही समय में यह कीट वृक्ष की आंतरिक परत को नष्ट कर देता है , जिससे उसमें से बुरादा (पाउडर जैसा कण) निकलने लगता है । यह संकेत है कि वृक्ष अंदर से खोखला हो चुका है । प्रभावित सरई (साल) के  वृक्ष कुछ ही सप्ताहों में सूखकर गिर जाता है और बीमारी तेजी से आसपास के वृक्षों में फैल जाती है ।

*साल वृक्ष का महत्व और अमरकंटक का वन सौंदर्य*

अमरकंटक क्षेत्र में साल वृक्षों का विस्तार लाखों की संख्या में फैला हुआ है। यह वृक्ष न केवल क्षेत्र की हरियाली और सौंदर्य का प्रतीक हैं बल्कि स्थानीय जलवायु को नियंत्रित करने में भी बड़ी भूमिका निभाते हैं । साल वृक्षों की पत्तियाँ और छाया वायुमंडल में नमी बनाए रखती हैं । मिट्टी को कटाव से बचाती हैं और वर्षा के जल को धरातल में समाहित कर भूजल स्तर को बढ़ाने में सहायक होती हैं ।
साल वृक्षों के कारण अमरकंटक की जलवायु सामान्यतः शीतल और संतुलित रहती है । यहाँ की यही हरियाली नर्मदा , सोन और जोहिला जैसी नदियों के उद्गम स्रोतों की जीवनरेखा बनी हुई है ।

अमरकंटक में करीब 18-20 वर्ष पूर्व भी क्षेत्र के आसपास साल बोरर रोग का भारी प्रकोप देखा गया था । उस समय वन विभाग को लाखों संक्रमित साल वृक्षों को काटना पड़ा था ताकि संक्रमण आगे न फैले । परिणामस्वरूप क्षेत्र का पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ गया , नमी घट गई और कई स्थानों पर छोटे-छोटे जलस्रोत सूखने लगे थे । अब वही स्थिति फिर से सिर उठाती दिखाई दे रही है ।

*अमरकंटक के संत समाज और नागरिकों की चिंता और अपील*

अमरकंटक संत मंडल के अध्यक्ष श्रीमहंत रामभूषण दास जी महाराज (शांति कुटी आश्रम) के प्रमुख ने इस विषय पर गहरी चिंता व्यक्त की है । उन्होंने बताया कि हाल ही में उन्होंने अपने भ्रमण के दौरान अमरकंटक एवं उससे  सटे वन क्षेत्रों – कपिलधारा मार्ग , कबीर चबूतरा क्षेत्र , खुरखुरी दादर और मैकल पर्वत श्रृंखला के हिस्सों में  हजारों की संख्या में सूखते साल के वृक्ष देखे गए हैं ।
स्वामी जी ने यह भी कहा कि केवल एक वन रोग नहीं बल्कि अमरकंटक के भविष्य से जुड़ा गंभीर प्रश्न है। यदि समय रहते वन विभाग और जिला प्रशासन ने रोकथाम के उपाय नहीं किए तो आने वाले वर्षों में अमरकंटक की पहचान ‘हरित तीर्थ’ से ‘सूखा क्षेत्र तीर्थ’ में बदल सकता है । इस त्रादसी पर साल वृक्षों का नाश यहाँ की नदियों , जलस्त्रोतों और पर्यावरणीय संतुलन को सीधा प्रभावित करेगा।”
उन्होंने और बताया कि इस विषय को लेकर वे जिला कलेक्टर श्री हर्षल पंचोली से भेंट होने पर कह चुके हैं और वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को भी समस्या से अवगत कराया गया है ।

स्वामी लवलीन महाराज (श्री परमहंस धारकुंडी आश्रम) के प्रमुख ने बताया कि साल बोरर कीड़े यहां के लिए घोर संकट से कम नहीं । इसके लिए प्रशासन को जल्द से जल्द कदम उठाने पड़ेंगे ।

नितिन अग्रवाल (प्रमुख सर्वोदय विश्रामगृह) ने कहा कि जंगल में अनेक जगह वार्डो में भ्रमण पर साल के कीड़े लगे हुए है । वृक्षों के नीचे बुरादा जैसा दृश्य खूब नजर आता है । हमने लंबे समय से चर्चा कर जानकारी देते आ रहे है ।

प्रकाश द्विवेदी (विक्की)एवं दिनेश द्विवेदी (सोनू) वरिष्ठ बीजेपी कार्यकर्ताओं ने बताया कि पूर्व में लगे सारबोरर में जो छती क्षेत्र को हुई थी वह अब न हो इसके लिए प्रशासन को तत्परता के साथ कीड़ों को समाप्त करने का उपाय करना चाहिए ।

दिनेश साहू (समन्वयक) ने कहा कि जंगलों में सरई के वृक्षों में कीड़े बहुतायत तादात में लग रहे है , पेड़ भी सूखने लगे है । पेड़ों के नीचे कीड़ों के काटने से बुरादा दुख रहा है ।

*कार्रवाई की आवश्यकता और वैज्ञानिक उपाय*

विशेषज्ञों का कहना है कि साल बोरर का संक्रमण रोकने के लिए त्वरित फ्यूमिगेशन , फील्ड मॉनिटरिंग और कीट नियंत्रण हेतु जैविक उपायों की आवश्यकता है । संक्रमित वृक्षों की समय पर पहचान और हटाने के साथ-साथ नए पौधारोपण की वैज्ञानिक योजना बनाना भी अत्यावश्यक है ।

स्थानीय नागरिकों ने भी जिला प्रशासन से अपील की है कि अमरकंटक के साल वनों की रक्षा के लिए विशेष अभियान चलाया जाए ताकि इस प्राकृतिक धरोहर को बचाया जा सके ।

अमरकंटक केवल एक तीर्थ नहीं बल्कि भारत की जल और पर्यावरणीय धरोहर का जीवंत प्रतीक है। यहाँ के साल वृक्ष इस पवित्र भूमि की हरियाली और नमी के रक्षक हैं । यदि इन पर आई यह बीमारी नहीं रोकी गई, तो यह न केवल अमरकंटक बल्कि सम्पूर्ण मध्य भारत के पारिस्थितिक संतुलन को प्रभावित कर सकती है ।

अमरकंटक वन परिक्षेत्र अधिकारी व्ही के श्रीवास्तव ने बताया कि साल बोरर की जानकारी आ रही है इसकी सूचना लिखित में उच्चाधिकारियों को भेजी जाएगी ।

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